शिक्षित लोगों की मानसिकता पर सवाल
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को विश्वभारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा कि यह केवल विचारधारा का सवाल नहीं है, बल्कि मानसिकता का भी मामला है।
आप जो करते हैं, वह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी मानसिकता सकारात्मक है या नकारात्मक। जो लोग दुनिया में आतंक और हिंसा फैला रहे हैं, वे भी बहुत शिक्षित और कुशल लोग होते हैं। दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जो एक महामारी से लड़ते हुए प्रयोगशालाओं में दिन-रात काम कर रहे हैं।
पी एम नरेंद्र मोदी ने फिर से विपक्ष पर उंगली उठाते हुए एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि उन्हें संघ की मानसिकता से अलग सोचने की बिल्कुल आदत नहीं है, जैसी वैचारिक स्वतंत्रता पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई और पूर्व गृहमंत्री आडवाणी ने दिखाई थी।
हमारे लोकप्रिय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को न ही कोई कमी अपनी पार्टी के बयानवीर नेताओं में दिखती है, जैसे बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के बयानों में इनका पढ़ा लिखा होना दिखता है और न ही मानसिकता में कमी दिखती है। प्रवेश वर्मा का दिल्ली वाला बयान भी आपत्तिजनक था।
देश के मंत्री जो संविधान की शपथ लेते हुए, देशवासियों के हित के लिए काम करने की शपथ लेते है और फिर सभाओं में “देश के गद्दारों को गोली मारो….को” जैसे बयान देते हैं नाम आप समझ ही गए होंगे अनुराग ठाकुर, क्या उनके बयान में किसी मानसिकता विशेष की बू नहीं आती?
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लोकतंत्र में किसी की जबान पर अंकुश लगा पाना सम्भव नहीं है, परंतु पार्टी के स्तर पर ऐसे लोगो को कड़ा संदेश देकर स्वयं को ऐसे बयानों से अलग करने की जिम्मेदारी तो प्रधानमन्त्री की बनती है।
परन्तु हमारे लोकप्रिय प्रधान सेवक को इन बयानों की तो आहट भी नहीं लगती और न ही वे इन बयानों से आहत होते हैं, बल्कि कुटिलतापूर्ण इन बयानों का समर्थन करते प्रतीत होते हैं।
ऐसा ही कुछ किसानों के आंदोलन के साथ ही हुआ है, उन्हें खालिस्तानी, पाकिस्तानी, देशद्रोही कहकर उनका निरंतर अपमान छद्म मुखों से कराया जा रहा है, जिसमें गोदी मीडिया प्रमुख भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
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